Covishield Vaccine: कोवीशील्ड वैक्सीन लगवाई है तो घबराएं नहीं , जानिए एक्सपर्ट्स की राय

कोवीशील्ड वैक्सीन लगवाई है तो घबराएं नहीं , जानिए एक्सपर्ट्स की राय
नई दिल्ली। ब्रिटेन की फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने अदालती दस्तावेजों में स्वीकार किया है कि उनकी कोरोना वैक्सीन से खतरनाक साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं, जिसमें रक्त में थक्के जमना भी शामिल है। हालांकि कंपनी ने ये भी कहा है कि ऐसा दुर्लभ मामलों में ही होगा।
ब्रिटेन में एस्ट्राजेनेका पर आरोप है कि उनकी वैक्सीन से कई लोगों की मौत हो गई। वहीं कई अन्य को गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ा। कंपनी के खिलाफ हाईकोर्ट में 51 मामले चल रहे हैं। इस खबर ने दुनिया भर में लोगों को चिंता में डाल दिया है। इसमें भारतीय भी शामिल हैं।
आपको बता दें कि एस्ट्राजेनेका का जो फॉर्मूला था उसी से भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ने कोवीशील्ड नाम से वैक्सीन बनाई गई है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत में करीब 80 फीसदी लोगों को कोविशील्ड वैक्सीन लगाई गई है। अब इसे लेकर हुए खुलासे के बाद इंडिया टुडे ने डॉक्टरों से एस्ट्राजेनेका वैक्सीन से उत्पन्न दुर्लभ प्रभावों को लेकर बात की है।
अपोलो अस्पताल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुधीर कुमार ने चैनल से बात करते हुए कहा कि वैक्सीन से जुड़े प्रतिकूल प्रभाव आम तौर पर वैक्सीनेशन के कुछ हफ्तों के भीतर ही होते हैं। इसलिए भारत में जिन लोगों ने 2 साल पहले ये टीका लिया था उन्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।
नेशनल इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के सह-अध्यक्ष डॉ. राजीव जयदेवन ने कहा कि वैक्सीन से जुड़े दुष्प्रभाव पहली खुराक के शुरुआती महीनों में देखे जा सकते हैं। अब लोगों को चिंतित होने की जरूरत नहीं है। डॉ. कुमार ने कहा कि भारत में वैक्सीन के बाद टीटीएस का मामला नहीं मिला है।
टीटीएस का मतलब थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम है। टीटीएस से शरीर में खून के थक्के जमने (Blood Clot) लगते हैं या बॉडी में प्लेटलेट्स तेजी से गिरने लगते हैं। बॉडी में ब्लड क्लॉट की वजह से ब्रेन स्ट्रोक या कार्डियक अरेस्ट की आशंकाएं बढ़ जाती हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि टीटीएस के मामले कोई नई चीज नहीं है। टीटीएस पिछले 100 वर्षों से एक चर्चित बीमारी रही है। इसका पहला मामला साल 1924 में रिपोर्ट किया गया था। ये क्या है और कैसे होता है इसके बारे में डॉक्टर काफी समय से जानते हैं और 40 से भी अधिक सालों से टीटीएस चिकित्सा पाठ्यक्रम का हिस्सा रहा है।
डॉ. सुधीर कुमार ने कहा, “यह भारत और अन्य देशों से प्रकाशित कई वैज्ञानिक अध्ययनों में साबित हुआ है कि कोविड संक्रमण से रक्त के थक्के बनने का खतरा बढ़ जाता है, जो कि कोविड वैक्सीनेशन की तुलना में कहीं अधिक है।”
क्या कोवैक्सिन कोविशील्ड से बेहतर है?
डॉ. कुमार ने कहा कि प्रतिकूल प्रभावों के जोखिम के आधार पर हमें एक कोविड वैक्सीन के बजाय दूसरे वैक्सीन को चुनने में मदद करने के लिए पर्याप्त डेटा नहीं है। उन्होंने कहा, “इसके अलावा, टीटीएस को अन्य टीकों, जैसे इन्फ्लूएंजा वैक्सीन, न्यूमोकोकल वैक्सीन, एच1एन1 टीकाकरण और रेबीज वैक्सीन के साथ भी रिपोर्ट किया गया है।”
वहीं, डॉ जयदेवन ने कहा कि दोनों टीके प्रभावी हैं। उन्होंने कहा, “यह कहने की कोई जरूरत नहीं है कि एक दूसरे से बेहतर है। सभी टीकों और चिकित्सा उपचारों के दुष्प्रभाव होते हैं। भारत में ये टीके लेने वाले करोड़ों लोग जीवित हैं और अब ठीक हैं।”
वैक्सीन कोई भी लगाई हो डरने की जरूरत नहीं- एम्स रिपोर्ट
कोविशील्ड वैक्सीन पर उठ रहे सवालों के बीच विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना महामारी के बाद अचानक मौतें हो रही हैं लेकिन वैक्सीनेशन हर मौत की सीधी वजह नहीं है। बता दें विशेषज्ञ मानते हैं कि देश में वैक्सीनेशन को हुए लंबा समय गुजर गया है यदि टीकाकरण के बाद कोई साइड इफेक्ट्स दिखता, तो अभी तक देश में बड़े स्तर पर केस सामने आ चुके होते।
जानकारी के अनुसार दिल्ली एम्स ने अचानक हुई मौतों की वजह जानने के लिए जो अध्ययन किया उसमें से 50 फीसदी मौतें हार्ट अटैक से नहीं हुईं। सांस समेत दूसरी बीमारियों से इनकी मौते हुई हैं, वहीं बचे 50 फीसदी को सीधे तौर पर हार्ट अटैक आया। एम्स के विशेषज्ञों की राय है कि यदि खून में थक्का पड़ता तो सभी मौते हार्ट अटैक से होनी चाहिए थी।



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