भारतीय संस्कृति बचाने के लिए बच्चों को अच्छे संस्कार देना जरूरी: सत्य साधक गुरुजी
पावन राप्ती तट पर मां बगलामुखी महायज्ञ संपन्न
सत्य साधक गुरुजी से अनेक लोगों ने ली गुरु दीक्षा
श्रावस्ती। जय मां पीतांबरी साधना एवं दिव्य योग ट्रस्ट के संस्थापक सत्य साधक श्री विजेंद्र पांडे गुरु जी के दिशा निर्देशन में पावन राप्ती नदी के तट पर मां बगलामुखी महायज्ञ का आयोजन किया गया।
करीब 6 घंटे तक चल हवन में देश- प्रदेश में लोकमंगल की कामना की गई।
इस दौरान भक्तजनों को संबोधित करते हुए सत्य साधक श्री विजेंद्र पांडे गुरु जी ने कहा कि भावी पीढ़ी सनातन भारतीय संस्कृति से विमुख होकर तेजी के साथ पाश्चात्य की ओर अग्रसर हो रही है जोकी एक बड़ी चिंता का विषय है। गुरु जी ने कहा भावी पीढ़ी द्वारा आए दिन नशावृत्ति , दुराचार ,हत्या सहित जो पार्श्विक घटनाएं सामने आ रही है उनके पीछे चकाचौंध भरी पश्चिमी संस्कृति के साथ ही कहीं ना कहीं हम भी दोषी हैं।
सत्य साधक गुरु जी ने कहा संस्कारों और संस्कारों की सुन्दरता के महत्व की पहली कड़ी घर से शुरू होती है। घर से ही बच्चों के संस्कार की शुरूआत होती है। अभिभावकों को इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए। इसके बाद दूसरी जिम्मेदारी स्कूल के शिक्षकों एवं शिक्षिकाओं की होती है, जो बच्चों के अच्छे संस्कारों का बोध कराते हैं। सिर्फ संस्कार ही नहीं, बल्कि इसके बारे में जानकारी भी होनी चाहिए। हमारे संस्कार अच्छे हैं और हमें अच्छे या खराब की जानकारी नहीं है, तो इसका महत्व नहीं रहता। लिहाजा, संस्कारों का ज्ञान और उनकी सुन्दरता ही हमें उन्नति के लिए प्रेरित करती है। यदि संस्कारों की एक कड़ी शुरू हो जाती है तो फिर इसमें निरंतरता बनी रहती है और यही अच्छा समाज बनाने सहायक होती है।
गुरु जी ने कहा बच्चे के संस्कार और शिष्टाचार उसके ख़ुद के जीवन की ही नहीं बल्कि पूरे समाज की दिशा और दशा तय करते हैं। बच्चों में संस्कार और शिष्टाचार उनके माता-पिता से आते हैं और इनको विकसित करने में उनकी बहुत बड़ी भूमिका होती है। बचपन में दी गई शिक्षा व्यक्ति के साथ आजीवन रहती है इसलिए बच्चों को सही दिशा देना बहुत ज़रूरी है।
सत्य साधक गुरुजी ने कहा संस्कारों से ही दया, करुणा, प्रेम, परोपकार आदि से स्वयं का जीवन सजाने वाला व्यक्ति महान बन जाता है। जबकि जीवन में यदि संस्कार और मर्यादा नहीं है तो व्यक्ति का पतन निश्चित है। परिवार और माता-पिता के संस्कार बच्चों को प्रभावित करते हैं। परिवार में नियम की तरह पीढ़ी-दर-पीढ़ी जो संस्कार बच्चों तक पहुंचते हैं उसका गहरा प्रभाव उनके व्यक्तित्व पर पड़ता है। बड़ों के पैर छूना, सिर झुकाकर प्रणाम, प्रात: जल्दी उठना, गरीबों की मदद करना, घर के बुजुर्गो की सेवा करना आदि संस्कार हमें अपने परिवार से ही मिलते हैं। बच्चों में नैतिक शिक्षा देने का काम हो।
गुरु जी ने कहा, आज के इस बदलते परिवेश में समय निकालकर बच्चों को संस्कारवान बनाना यज्ञ करने के समान है। आदर्श समाज की स्थापना संस्कार से ही शुरू हो सकती है और संस्कार जन्म से ही डाला जा सकता है। अच्छे संस्कार जीवन को उचित दिशा देते हैं। बाल्यावस्था में अनुशासन के संस्कार का बीजारोपण होना आवश्यक है। अगर बचपन में बच्चों को अच्छे संस्कार दिए गए तो वह पूरे जीवन उसके साथ रहते हैं और चाहकर भी गलत काम नहीं कर पाता।
इस दौरान प्रसाद वितरण के उपरांत कई लोगों ने गुरुजी से दीक्षा ग्रहण की और सन्मार्ग में चलने का संकल्प लिया।
सबसे पहले ख़बरें पाने के लिए -
हमारे व्हाट्सएप समाचार ग्रुप से जुड़ें
फेसबुक पर जुड़ने हेतु पेज़ को लाइक करें
टेलीग्राम ग्रुप से जुड़ने के लिए क्लिक करें
हमारे इस नंबर 9927164214 को अपने व्हाट्सएप ग्रुप में जोड़ें