बीज बैंक बना आत्मनिर्भरता का आधार: देवीपुरा की महिलाओं की मिसाल

ग्रामोत्थान परियोजना के सहयोग से ‘जय माँ भगवती’ समूह ने दिखाया आत्मनिर्भरता का रास्ता
Champawat News- जनपद चंपावत के छोटे से ग्राम देवीपुरा की महिलाओं ने यह सिद्ध कर दिया है कि परिवर्तन की शुरुआत छोटे कदमों से भी हो सकती है—यदि उनमें संकल्प, श्रम और सामूहिकता की शक्ति हो।
यहाँ की “जय माँ भगवती स्वयं सहायता समूह” ने बीज संग्रहण को सिर्फ एक आजीविका नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और सामाजिक सशक्तिकरण का माध्यम बना दिया है।
गाँव देवीपुरा की अधिकांश महिलाएं खेती-किसानी से जुड़ी थीं, परंतु बाजार से मिलने वाले महंगे और घटिया गुणवत्ता वाले बीजों के कारण खेती घाटे का सौदा बनती जा रही थी।
महिलाओं और किसानों को ना केवल आर्थिक संकट झेलना पड़ता था, बल्कि पारंपरिक बीजों की विलुप्ति से उनकी कृषि-संस्कृति भी संकट में थी।
इस परिस्थिति में श्रीमती राधा देवी ने 11 महिलाओं को साथ जोड़ा और “जय माँ भगवती स्वयं सहायता समूह” की स्थापना की। समूह ने यह निश्चय किया कि वे अपने ही गाँव के पारंपरिक बीजों को सहेजेंगी और किसानों को सस्ते, जैविक एवं गुणवत्तापूर्ण बीज उपलब्ध कराएँगी।
प्रारंभ में कुछ झिझक थी, संसाधन सीमित थे, लेकिन महिलाओं का हौसला अडिग था। उन्होंने अपने ही घरों में पारंपरिक गेहूँ, धान, और सब्जियों के बीजों का संग्रहण शुरू किया। पुराने अनुभवशील किसानों से सीखी गई पारंपरिक तकनीकों को नीम की पत्तियों, राख और स्थानीय संसाधनों के साथ मिलाकर सुरक्षित भंडारण का कार्य शुरू किया गया।
ग्रामोत्थान परियोजना से मिली उड़ान
समूह को उत्तराखण्ड ग्राम्य विकास समिति (UGVS) की ग्रामोत्थान परियोजना के अंतर्गत पहचान मिली। यह परियोजना अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास निधि (IFAD) द्वारा वित्त पोषित है, जिसका उद्देश्य है — ग्रामीण गरीब परिवारों की आजीविका में वृद्धि कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना और पलायन को रोकना।
परियोजना के अंतर्गत समूह को कुल ₹10 लाख की सहायता प्राप्त हुई, जिसमें ₹6 लाख अनुदान, ₹3 लाख का बैंक ऋण और ₹1 लाख समूह का अंशदान था। इस पूंजी से महिलाओं ने बीज बैंक के रूप में एक संगठित इकाई स्थापित की।
समूह ने किसानों से पारंपरिक बीज इकट्ठा कर उन्हें वैज्ञानिक व जैविक विधियों से संरक्षित करना शुरू किया। धीरे-धीरे यह पहल फल देने लगी। अब तक समूह ने 6 क्विंटल गेहूं, 58 क्विंटल धान और 40 किलो लहसुन के बीज एकत्र कर विक्रय किया है।
इससे गाँव के किसानों को अब महंगे और बाहरी बीजों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। उन्हें भरोसेमंद, पारंपरिक, जैविक और सस्ते बीज अपने गाँव में ही उपलब्ध हैं। समूह का बीज बैंक अब आसपास के गाँवों तक लोकप्रिय हो चुका है।
पिछले 6 महीनों में लगभग ₹40,000 का लाभ अर्जित कर समूह ने यह सिद्ध कर दिया है कि सही मार्गदर्शन और सामूहिक प्रयासों से महिलाएं न केवल परिवार की आर्थिक रीढ़ बन सकती हैं, बल्कि एक स्थायी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की भी नींव रख सकती हैं।
राधा देवी कहती हैं “हमारे बीज हमारी परंपरा हैं। उन्हें बचाकर हम अपने गाँव का भविष्य बचा रहे हैं। आत्मनिर्भर बनने का असली रास्ता हमारे खेत और हमारी मेहनत से होकर जाता है।”

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