हल्द्वानी: फूलदेई छम्मा देई , दैणि द्वार भरि भकार य देई को बार-बार नमस्कार–
हल्द्वानी। चैत्र प्रतिपदा के दिन मनाया जाने वाला पर्व फूलदेई उत्तराखंड में सर्वत्र हर्षोल्लास के साथ मनाया गया । प्रातः काल ही बच्चे अपने घर की वाटिका या आसपास से फूल तोड़कर थाली में गुड़ और चावल के साथ रखकर अपने घर की देहली और मंदिर का पूजन किया। तत्पश्चात आसपास के घरों में जाकर लोगों की देहली और घर की चौखट का पूजन किया । इस अवसर पर बच्चों के द्वारा उत्तराखंड में सुपरिचित गीत गया, फूलदेई छम्मा देई, जो भी दिया वही सही। दैण द्वार भरि भकार य देई को बार-बार नमस्कार।
इसके साथ ही उन्होंने यह मनोकामना की कि, वे जिस घर की देहली का पूजन कर रहे हैं वह घर सुख समृद्ध हो । वहां खुशहाली का वास हो और बसंत पंचमी से उनके घर में दिनोंदिन उन्नति और तरक्की हो।
घर की लक्ष्मी के द्वारा देहली पूजन करने वाले बच्चों को गुड़, चावल और भेंट प्रदान की गयी।
नवाबी रोड स्थित तल्ला गोरखपुर में जयश्री तिवारी के घर में देहली का पूजन करते हुए बच्चों के द्वारा ऐसी मनोकामना की गई । इनमें प्रणव कांडपाल, चित्राक्षी तिवारी, मिताक्षी, चिन्मय,दिव्यांशी तिवारी आदि शामिल रहे।
नैनीताल जनपद में धूमधाम मनाया फूलदेई
प्रकृति का आभार प्रकट करने वाला लोक पर्व फूलदेई, जिसकी कुछ खुशियों की झलक संपूर्ण पहाड़ के साथ बिंदुखत्ता एवं लालकुआं में भी दिखाई दी, जहां यह पर्व किशोरी लड़कियों और छोटे बच्चों द्वारा हर्षोल्लास से मनाते देखा गया।
फूलदेई के दिन लड़कियां और बच्चे सुबह सुबह उठकर बुरांश और कचनार जैसे जंगली फूल इकट्ठा करते हैं और टोकरी में सो जाते हैं इन्हीं चीजों के साथ गुड़ और चावल नारियल सहित रखकर बच्चे अपने गांव और मोहल्ले की ओर निकल जाते हैं। इन फूलों और चावलों को गांव के घर की दिल्ली यानी मुख्य द्वार पर डालकर लड़कियां उस घर की खुशहाली की दुआएं मांगते हैं इस दौरान एक गाना भी गाया जाता है, जो पूरे पहाड़ में बच्चों द्वारा बड़े उत्साह के साथ गाया जाता है।
फुलदेई फूलदेई-फूलदेई,
छम्मा देई, छम्मा देई,
देणि द्वार, भर भकार,
ते देलि स बारम्बार नमस्कार।
फूलदेई को लेकर कई लोक कथाएं प्रचलित
फूलदेई को लेकर कई लोक कथाएं जुड़ी हैं जिनमें से एक जो पहाड़ों में काफी प्रचलित है वह यह है।
एक वनकन्या थी जिसका नाम फ्युली था,वह जंगल में रहती थी और पेड़ पर पौधे और जानवर ही उसका परिवार और दोस्त हुआ करते थे, एक दिन देश का राजकुमार जंगल में घूमने आया राजकुमार को देखते ही फ्योली को उस से प्रेम हो गया,राजकुमार के कहने पर फ्यूली ने उससे शादी भी कर ली और पहाड़ों को छोड़कर वहां उसके साथ महल में चली गई। फुळी के जाते ही पेड़ पौधे मुरझाने लगे नदियां सूखने लगी और पहाड़ बर्बाद होने लगे, उधर महल में फुअली खुद भी बहुत बीमार रहने लगी, और उसकी मृत्यु हो गई, मरते मरते उसने राजकुमार से गुजारिश की कि उसके शव को पहाड़ नहीं कहीं दफना दे, फ्यूलि का शरीर राजकुमार ने पहाड़ की ऊंची चोटी पर जाकर दफनाया जहां से वह उसे लेकर आया था। कुछ महीनों बाद उसी जगह पर फूल खिलने लगे जिसे फुअलि का नाम दिया गया, इसी तरह पहाड़ की भी सारी खुशियां वापस लौट आई। इन्हीं फूलों से द्वार पूजा करके लड़कियां फूलदेई मैं अपने घर और पूरे गांव की खुशहाली की दुआएं करती है
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