श्रद्धांजलि: एक आदर्श शिक्षिका के रूप में प्रतिष्ठित थीं स्वर्गीय सरला जी
चिरस्थाई यादों में सदैव स्मरणीय रहेंगी, उपनिदेशक सूचना योगेश मिश्रा की माताजी स्व० श्रीमती सरला मिश्रा जी

हल्द्वानी/ रुद्रपुर।
एक आदर्श शिक्षिका,आध्यात्मिक जगत की महान् विराट विभूति ,लोक मंगलकारी कर्मो का सृजन करके निष्काम कर्म की प्रेरणा देकर जीवन पथ को निर्मल आभा से सवांरकर करुणा की दिव्य छाया बरसाने वाली कर्म ही जिनका महान् शब्द था , अनुशासन जिनका परम धर्म था, दया ही जिनका परम धाम था ,अलौकिक सता के प्रति हर पल जिनका रुझान था जो मानवीय रूप में साक्षात् करूणा की मूर्ति थी ,आत्मा की अमरता व शरीर की नश्वरता को जो भलि-भांति जानती थी, देवभूमि व यहां के तीर्थ स्थलों के प्रति जिनके हदय में अपार श्रद्वा थी समय- समय पर जिनका पर्दापण देवकार्यो में होता रहता था वो सरल हदय ममता व करूणा की साक्षात् मूर्ति श्रीमती सरला जी अब इस नश्वर संसार में नही रही बीतें शनिवार को वे दिव्य लोक को प्रस्थान कर गयी उनके निधन की सूचना से समूचा क्षेत्र शोक से व्याकुल हो उठा है, यहां के जनमानस में उनके प्रति गहरी श्रद्वा थी। उनका आत्मिक रूप से मिलना जुलना उनके विशाल हदय की विराटता को झलकाता था सरल से भी सरल श्रीमती सरला मिश्रा जी ने अपनी जीवन यात्रा साधना को निष्काम कर्मयोगी की तरह जिया अभावग्रस्त लोगों के बीच जाकर उनके दुख-दर्दो से रुबरु होने वाली सरला जी सच्चे अर्थो में दरियादिली की जीती जागती मिशाल थी । देवभूमि के प्राकृतिक सौर्दयता की वे कायल थी यहां से उनका अमिट लगाव था । उनकी सादगी ,विनम्रता स्नेहशीलता का कोई जबाब नही था। उनका जीवन सफर धार्मिक व सामाजिक कार्यो व शिक्षा के विस्तार में बीता उनकी जहां ईश्वर के प्रति गहरी आस्था थी, वही समाजसेवी के क्षेत्र में भी वह समर्पित रही। उनका निधन अध्यात्मिक व सामाजिक शिक्षा जगत में अपूर्णीय क्षति है। उनके द्वारा किए गए सामाजिक कार्यो को हमेशा याद किया जाएगा। वे एक अनुकरणीय व्यक्तित्व के साथ – साथ विनम्रता और धैर्य की आदर्श मिशाल थी एवं उनके हृदय में हम सभी के लिए अथाह प्रेम और सहयोग की भावना थी उनके निधन से जो अपूरर्णीय क्षति हुयी है उसकी भरपाई कभी नही हो सकती है।
जीवन एक संघर्ष है इससे भी बड़ा सत्य यह है कि जीवन एक ऐसा उधार है जिसे हर इंसान को वापस करना है। अवतारी पुरुष हो अथवा सामान्य मानव या अन्य कोई, सभी को एक न एक दिन इस संसार को छोड़कर जाना पड़ता है क्योंकि संसार परिवर्तनशील व आत्मा अमर है। जीना का उसी का सार्थक है जो दूसरों के हित के लिए जीता है। अपने लिए जीना कर्मभोग और दूसरों के लिए जीना कर्मयोग है। कर्मयोग ही जीवन की सार्थकता है। कर्मों में कुशलता ही योग है। कर्मयोगी के महान उदाहरण के रूप में अपना जीवन अर्पित करने वाली सरला जी सदैव पूज्यनीय रहेगीं।
79 वर्ष की आयु में देह का परित्याग कर दिव्य लोक को प्रस्थान कर गयी स्व० सरला मिश्रा जी ने श्री गुरुनानक बालिका इण्टर कालेज रुद्रपुर में लगभग 35 वर्ष तक लेक्चरार के रुप में सेवायें प्रदान कर आदर्श शिक्षिका की भूमिका अदा की रिटायरंमेन्ट के पश्चात् भी किसी न किसी रुप में वे शिक्षा की ज्योति बिखेरती रही वे अपने पीछे दो पुत्र व दो पुत्रियों सहित भरा- पूरा परिवार छोड़ गयी है। उनके बड़े पुत्र श्री योगेश मिश्रा सूचना विभाग में उपनिदेशक है।और छोटे पुत्र पशुपालन विभाग में सेवारत है। //// रमाकान्त पन्त

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