हल्द्वानी: युवा संत महात्मा सत्यबोधानंद ने पेश की मानवता की उच्च मिसाल
लाशों के ढेर से शव ढूंढ कर कराया अंतिम संस्कार
कोरोना संक्रमित की मौत के बाद अपने तथा परिचितों ने कर दिया था किनारा

हल्द्वानी( हरीश भट्ट)। कोरोना महामारी भयावह तस्वीर पेश करती जा रही है संक्रमित लोग जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं व्यवस्थाएं पटरी से उतरती जा रही है इन सबके बीच सबसे दर्दनाक पहलू यह है कि कोरोना संक्रमित से मरने वालों के अपने फिर बेगाने हो जा रहे हैं लेकिन समाज में आज भी कुछ ऐसे लोग हैं जो मानवता की उच्च मिसाल पेश कर रहे हैं । ऐसे ही युवा संत हैं महात्मा सत्यबोधानंद जिन्होंने जान जोखिम में डालकर कुछ ऐसा कर दिखाया कि जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है ।
सद्गुरुदेव सतपाल महाराज के परम शिष्य महात्मा सत्यबोधानंद 16 वर्ष की आयु में सन्यास धारण कर चुके हैं और उनके जीवन का एकमात्र मकसद मानवता की सेवा करना था जिसे आज उन्होंने चरितार्थ करके दिखा दिया हल्द्वानी की उषा रूपक कॉलोनी में अंजली वर्मा नाम की एक महिला रोते बिलखते लोगों से मदद की गुहार लगा रही थी कि उसके पति का स्वास्थ्य खराब हो गया है उसकी मदद को आगे आए लेकिन उसे निराशा ही मिली बाद में उसकी नजर पास के ही श्री सतपाल महाराज आश्रम पर पड़ी तो उसने महात्मा सत्यबोधानंद को अपनी आपबीती सुनाई जिस पर महात्मा सत्यबोधानंद ने तत्काल वाहन की व्यवस्था कर उन्हें सुशीला तिवारी अस्पताल में भर्ती करवाया लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद उसके पति विमल वर्मा को नहीं बचाया जा सका विमल वर्मा की मृत्यु के बाद परिवार का अथवा परिचय का कोई भी व्यक्ति अस्पताल नहीं पहुंचा इस पर महात्मा सत्यबोधानंद ने डेड बॉडी के संबंध में मालूमात की तो पता लगा कि वह शव मोर्चरी में भेजा जा चुका है लेकिन अब सवाल था कि इस का दाह संस्कार कौन करेगा बहरहाल मृतक का छोटा भाई जरूर मोर्चरी पहुंचा लेकिन वहां का नजारा देख उस के भी हाथ-पांव फूल गए और वह अपने छोटे-छोटे बच्चों की दुहाई देने लगा इस पर महात्मा सत्यबोधानंद जी ने खुद ही पीपीई किट खरीद कर मोर्चरी में जाकर लाशों के ढेर से विमल वर्मा के शव को ढूंढ निकाला और प्राइवेट एंबुलेंस के जरिए श्मशान घाट ले गए लेकिन वहां पर संस्कार करने वाली टीम ने चिता में आधी लकड़ी रखने के बाद डेड बॉडी के बाद ऊपर की लकड़ी रखने से साफ मना कर दिया ऐसी विषम परिस्थितियां भी मानवता के पुजारी बन चुके महात्मा सत्यबोधानंद ने हिम्मत नहीं हारी उन्होंने जहां मृतक के छोटे भाई को ढाढस बनाए रखा वहीं खुद आगे बढ़कर चिता में लकड़ी रखी और अपने हाथों से दाह संस्कार करा दिया।

युवा संत महात्मा सत्यबोधानंद ने जान जोखिम में डालकर मृतक का अंतिम संस्कार करा कर समाज के उन लोगों को भी बहुत बड़ी नसीहत दी है जो जीते जी इंसान से रिश्ता रखते हैं और मरने के बाद मानवीय रिश्तो की तिलांजलि दे देते हैं वहीं आज भी महात्मा सत्यबोधा नंद जी जैसे लोगों के दम पर ही आज इंसानियत जिंदा है और ऐसे लोग समाज की सच्ची धरोहर है।
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Such souls are doing great work and presenting a good example in front of humanity today. At this time of pandemic, relationships are just for name sake and such souls are really grace of that almighty God. Salute to the service.