बिंदुखत्ता राजस्व गांव की मांग को लेकर धरना- प्रदर्शन में उमड़े ग्रामीण- Nainital News
लालकुआं तहसील में धरना- प्रदर्शन कर बिंदुखत्ता राजस्व गांव की अधिसूचना जल्द जारी करने की मांग

लालकुआं। नैनीताल जिले के बिंदुखत्ता क्षेत्र को राजस्व गांव का दर्जा दिलाने का लंबे समय से चला आ रहा संघर्ष एक बार फिर जोर पकड़ने लगा है। आज आयोजित एक दिवसीय धरना प्रदर्शन में हजारों की संख्या में ग्रामीणों ने हिस्सा लिया और सरकार से तत्काल अधिसूचना जारी करने की मांग की। प्रदर्शनकारियों ने पूर्व जिलाधिकारी द्वारा पत्रावली शासन को भेजे जाने के बावजूद कार्यवाही न होने पर गहरी नाराजगी भी जताई।
धरने को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने सवाल उठाया कि जब पूर्व जिलाधिकारी ने पूरी पत्रावली शासन को प्रेषित कर दी थी, तो अधिसूचना जारी करने के बजाय जिलाधिकारी को ही कार्यवाही का निर्देश क्यों दिया गया? उन्होंने इसे वन अधिकार अधिनियम 2006 के प्रावधानों के खिलाफ बताया। वक्ताओं का कहना था कि इस कानून के तहत पूरे भारत में हजारों एकड़ वन भूमि को राजस्व गांवों में तब्दील किया गया है, लेकिन उत्तराखंड में स्थिति बेहद दुखद है। यहां हरिद्वार और नैनीताल जिलों में मात्र छह गांवों को ही राजस्व गांव का दर्जा मिल सका है।
प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि क्या बिंदुखत्ता की यह लड़ाई राजनीतिक दलों के वोट बैंक की राजनीति में फंसकर रह गई है? उन्होंने कहा कि जनता को बरगलाया जा रहा है, जबकि वास्तव में लोगों को भूमि स्वामित्व और विकास योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए।
धरने में वन अधिकार समिति द्वारा अब तक किए गए कार्यों की विस्तृत जानकारी दी गई। समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि जिला स्तरीय समिति से स्वीकृति के बाद पत्रावली शासन को भेजी जा चुकी है, लेकिन एक वर्ष से अधिक समय बीतने के बावजूद कोई प्रगति नहीं हुई। वक्ताओं ने चेतावनी दी कि यदि शीघ्र अधिसूचना जारी नहीं की गई तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा।
बिंदुखत्ता मूल रूप से वन ग्राम है, जहां दशकों से बसे हजारों परिवार भूमि अधिकारों से वंचित हैं। वन अधिकार अधिनियम 2006 की धारा 4(7) के तहत वन ग्रामों को राजस्व ग्राम में बदलने का प्रावधान है, जिसके आधार पर यह मांग की जा रही है। प्रदर्शन में महिलाओं और युवाओं की बड़ी संख्या ने भाग लिया, जो इस मुद्दे की गंभीरता को दर्शाता है।
यह धरना बिंदुखत्ता संघर्ष की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ, जहां लोगों ने एक स्वर में सरकार से न्याय की गुहार लगाई। आंदोलनकारी अब राष्ट्रीय स्तर पर सेमिनार आयोजित करने और अन्य राज्यों की वन अधिकार समितियों से समर्थन जुटाने की योजना बना रहे हैं।
वन अधिकार अधिनियम का सहारा लेकर शीघ्र अधिसूचना जारी करने की मांग
लालकुआं (नैनीताल), बिंदुखत्ता को राजस्व गांव बनाने की लंबी लड़ाई में ग्रामीणों की उम्मीदें एक बार फिर नई चुनौतियों से जूझ रही हैं। स्थानीय विधायक ने घोषणा की है कि प्रदेश में सभी वन ग्रामों (गोठ रकबों) के लिए नई व्यवस्था लागू की जाएगी, जिसे कैबिनेट से पास कर केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। यदि केंद्र में फाइल गयी , तो मामला सुप्रीम कोर्ट होते हुए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय तक पहुंचेगा।
वक्ताओं ने इसे वन संरक्षण अधिनियम 1980 (Forest Conservation Act) के तहत राजस्व गांव बनाने की जटिल प्रक्रिया बताया। इस कानून के अनुसार, सरकार को उतनी ही वन भूमि को राजस्व भूमि में बदलने के बाद समकक्ष भूमि लगाकर 40 वर्ष तक संरक्षण करना पड़ता है। निश्चित रूप से यह प्रक्रिया बेहद जटिल और समय लेने वाली है।
दूसरी ओर, प्रदर्शनकारियों ने जोर देकर कहा कि वन अधिकार अधिनियम 2006 (Forest Rights Act) के तहत यह प्रक्रिया काफी सुगम है। इस अधिनियम की धारा 3(1)(h) के प्रावधानों के तहत वन ग्रामों को सीधे राजस्व ग्राम में तब्दील करने की व्यवस्था है, बिना अतिरिक्त भूमि लगाने की जरूरत के। इससे न केवल अधिसूचना जल्द जारी हो सकती है, बल्कि केंद्र और राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ भी सीधे ग्रामीणों तक पहुंच सकता है।
गौरतलब है कि पूरे देश में इस अधिनियम के तहत हजारों वन ग्रामों को राजस्व गांव का दर्जा मिल चुका है, लेकिन उत्तराखंड में प्रगति धीमी है। बिंदुखत्ता जैसे बड़े वन ग्राम में दशकों से बसे हजारों परिवार अभी भी भूमि अधिकारों और मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं।
धरने में लोगों ने चिंता जताई कि क्या यह मुद्दा राजनीतिक दांव-पेच में उलझकर रह जाएगा? वक्ताओं ने मांग की कि सरकार वन अधिकार अधिनियम का सहारा लेकर शीघ्र अधिसूचना जारी करे, ताकि ग्रामीणों को न्याय मिल सके।
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