भारत के नए गेमिंग इन्फ्लुएंसर्स की अनोखी कहानी

भारत के नए गेमिंग इन्फ्लुएंसर्स की अनोखी कहानी
शुक्रवार रात 10 बजे, लखनऊ के पास एक छोटे कस्बे में 22 साल के अर्जुन 300 दर्शकों के सामने रम्मी गेम की लाइव स्ट्रीमिंग कर रहा है। उसे कोई बड़ी गेमिंग कंपनी स्पॉन्सर नहीं करती, फिर भी उसकी चैट में काफी चर्चा हो रही है। लोग किसी सेलिब्रिटी को देखने नहीं आए हैं, बल्कि एक ऐसे इंसान को देख रहे हैं जो उनकी तरह खेलता है, बात करता है और जीतता है।
भारत में गेमिंग इन्फ्लुएंसर सेगमेंट तेजी से बढ़ रहा है, ऐसे नज़ारे अब आम हो गए हैं। एक नई तरह की क्रिएटर्स की जनरेशन सामने आई है। ये साधारण, अक्सर क्षेत्रीय होते हैं और कैज़ुअल, स्किल-बेस्ड मोबाइल गेमिंग में गहराई से जुड़े हैं। ब्रांड्स और प्लेटफॉर्म्स के लिए जो नए यूज़र्स को पकड़ना चाहते हैं, ये क्रिएटर्स बहुत कीमती साबित हो रहे हैं।
गेमिंग का नया दौर: नई पीढ़ी के क्रिएटर्स के साथ
भारत में गेमिंग अब सिर्फ शहरों तक सीमित नहीं रह गया है। यह अब एक बहुभाषी, मोबाइल-प्रथम और स्थानीय स्तर पर बढ़ती हुई गतिविधि बन चुकी है। पूरे देश में लगभग 550 मिलियन गेमर्स हैं, जिनमें से करीब 70% अपनी मातृभाषा को ज्यादा पसंद करते हैं। इसलिए स्थानीय भाषाओं में कंटेंट की मांग तेजी से बढ़ रही है।
खुशकिस्मती से, गेमिंग प्लेटफ़ॉर्म अब इस दिशा में तेजी से काम कर रहे हैं।
ऑनलाइन रम्मी कई दूसरे गेमिंग ऐप्स अपनी क्षेत्रीय पहुंच को दोगुना कर रहे हैं। इनमें से कई 10 से ज्यादा भारतीय भाषाओं को सपोर्ट करते हैं। स्थानीय भाषाओं में बनी सामग्री इन प्लेटफ़ॉर्म्स पर स्ट्रीमिंग का बड़ा हिस्सा बनती है। कुछ ने हजारों जमीनी स्तर के इन्फ्लुएंसरों का मजबूत नेटवर्क भी तैयार किया है, जो अब कच्छी, हरियाणवी और कोंकणी जैसी बोलियों में 1 मिलियन से ज्यादा घंटे की सामग्री स्ट्रीम कर रहे हैं। खास बात ये है कि करीब 20% क्रिएटर्स ने पहली बार टैक्स रिटर्न भी फाइल किया है, जो दिखाता है कि मोबाइल-फर्स्ट गेमिंग और स्थानीय कंटेंट क्रिएशन अब एक टिकाऊ करियर बन चुका है।
जमीनी स्तर पर गेमिंग फॉर्मैट्स में बदलाव
पहले भारत में गेमिंग कंटेंट ज़्यादा चमक-धमक वाला और मेट्रो केंद्रित होता था, जहाँ ओटीटी एंटरटेनर्स और फैंटेसी एक्सपर्ट्स इंग्लिश या हिंग्लिश में बात करते थे। लेकिन 2025 में ये तस्वीर बिलकुल बदल गई है।
अब स्थानीय भाषा के क्रिएटर्स इस क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं। उनका ध्यान मुख्य रूप से स्किल-बेस्ड, मोबाइल-फर्स्ट गेम्स जैसे ऑनलाइन रम्मी, पोकर, कैरम, लूडो और क्विज़ ऐप्स पर है। ये ऐप्स रियल-मनी गेम्स के रूप में भी काम करते हैं और पूरे साल खिलाड़ियों को रोमांच देते हैं, जबकि फैंटेसी प्लेटफॉर्म सिर्फ टूर्नामेंट्स जैसे आईपीएल या विश्व कप के दौरान ही ज्यादा एक्टिव होते हैं। असल में, 88% रियल-मनी गेमर्स कहते हैं कि वे फैंटेसी स्पोर्ट्स पर केवल बड़े इवेंट्स के दौरान ही स्विच करते हैं।
यही वजह है कि कैज़ुअल और हाइपर-कैज़ुअल गेमिंग फॉर्मैट्स जल्दी लोकप्रिय हो रहे हैं। ये गेम्स खेलने में आसान, भाषा में सभी के लिए होते हैं और बड़े पैमाने पर पसंद किए जा रहे हैं। इन गेमर्स में महिलाएं, बुज़ुर्ग यूज़र्स और टियर 2 शहरों के क्षेत्रीय खिलाड़ी शामिल हैं। एक FICCI-EY रिपोर्ट के मुताबिक़, अकेले 2024 में 33 मिलियन नए गेमर्स ऑनलाइन जुड़े, जिसकी बड़ी वजह क्षेत्रीय भाषा तक पहुंच है। साथ ही, RMG सेक्टर भी तेजी से बढ़ रहा है। 2024 में 155 मिलियन भारतीयों ने नकद प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया, जो पिछले साल से 10% ज्यादा है।
यूट्यूब पर भी यह बदलाव साफ नजर आता है। अब ईस्पोर्ट्स सेलेब्स की चमक-दमक और नियॉन लाइट्स की जगह मराठी में रम्मी की रणनीतियाँ बताने वाले या तेलुगु में PUBG के विकल्प समझाने वाले क्रिएटर्स ने ले ली है। कई गैर-हिंदी क्रिएटर्स ने कुछ हजार सब्सक्राइबर से लेकर लाखों फॉलोअर्स तक का जबरदस्त सफर तय किया है।
गेमिंग की नींव: कम्युनिटी का महत्व
स्थानीय भाषा के क्रिएटर्स दिन-ब-दिन ज्यादा लोकप्रिय हो रहे हैं क्योंकि वे सिर्फ़ मनोरंजन नहीं करते, बल्कि अपने दर्शकों के साथ भरोसा भी बनाते हैं। जब वे अपनी मातृभाषा में बात करते हैं, तो कंटेंट में सांस्कृतिक गहराई आती है और दर्शकों की वफ़ादारी बढ़ती है। कुछ प्लेटफ़ॉर्म के डेटा से पता चलता है कि दर्शक औसतन 30 मिनट तक वीडियो देखते हैं, जो स्क्रॉल करके छोड़ने से बहुत ज्यादा है।
यह सांस्कृतिक जुड़ाव असली नतीजे भी देता है। कुछ स्थानीय भाषा के कैंपेन ने अपनी अंग्रेज़ी या हिंदी वाली कैंपेन से दोगुनी ज्यादा सहभागिता देखी है। क्योंकि 88% भारतीय इंटरनेट यूज़र्स अपनी मातृभाषा में विज्ञापन देखने को ज्यादा पसंद करते हैं, इसलिए यूज़र की हिस्सेदारी भी बढ़ती है।
दर्शक दूसरे तरीकों से भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। वे क्षेत्रीय लिपियों में चैट बॉक्स भरते हैं, गेम जीतने या अपनी कमाई निकालने के बारे में सवाल पूछते हैं, और लाइव प्रश्नोत्तर रम्मी के नियम या रणनीतियां साझा करते हैं। ये सब चीज़ें इस फॉर्मैट को सिर्फ कंटेंट से ज्यादा, एक बातचीत वाला अनुभव बना देती हैं।
नतीजा है जबरदस्त, कम्युनिटी की वजह से बढ़ती हुई ग्रोथ। हाल के वर्षों में, भारत में गेमिंग इन्फ्लुएंसर की कम्युनिटी 200% से भी ज्यादा बढ़ी है, और इनमें से कई पहले नजरअंदाज किए गए भाषा-क्षेत्रों से उभरे हैं। पंजाबी, भोजपुरी और गुजराती जैसी क्षेत्रीय भाषाएं, जिनमें कुछ साल पहले ऑनलाइन कंटेंट बहुत कम था, अब वहां भी दर्शकों की संख्या तीन अंकों में बढ़ रही है।
भविष्य अब यहां है; ब्रांड्स कर रहे हैं क्षेत्रीय गेमिंग स्टार्स पर दांव
ये क्षेत्रीय गेमिंग इन्फ्लुएंसर सिर्फ़ स्थानीय गेमिंग कम्युनिटी तक ही सीमित नहीं रह गए हैं, बल्कि बड़े गेमिंग ब्रांड्स का भी ध्यान उनकी तरफ़ आकर्षित किया है। क्योंकि ये स्टार्स कंपनियों के लिए अच्छा रिटर्न ऑफ़ इन्वेस्टमेंट (ROI) लेकर आते हैं।
स्थानीय भाषाओं में काम करने वाले प्रभावशाली लोगों के चलते मार्केटिंग की लागत लगभग 30% तक कम हुई है। एक कार्ड-गेमिंग ऐप ने क्षेत्रीय कंटेंट की वजह से इंस्टॉल में 123% की बढ़ोतरी देखी है। तेलुगु मीम क्रिएटर्स से लेकर भोजपुरी यूट्यूबर्स तक, ये छोटे शहरों के स्टार्स हैं जो अपने असली अंदाज़ से दर्शकों को जोड़ रहे हैं। गेमिंग कंपनियां जो इसे समझ गई हैं, वो अपनी रणनीतियां बदल रही हैं और इस नए ट्रेंड का हिस्सा बन रही हैं।
जो कभी एक छोटे ट्रेंड की तरह शुरू हुआ था, वो अब भारत के ऑनलाइन और मोबाइल-फर्स्ट गेमिंग इंडस्ट्री के लिए बहुत जरूरी बन गया है। 75% से ज्यादा गेमर्स अब सोशल मीडिया से नए गेम खोजते हैं, जिसमें सबसे बड़ा रोल क्षेत्रीय इन्फ्लुएंसर्स का है। ये लोग कंटेंट को अपनी भाषा में बदल रहे हैं और साथ ही गेमिंग की संस्कृति को भी नया रंग दे रहे हैं।
और उन ब्रांड्स के लिए जो अगले 500 मिलियन गेमर्स को हासिल करना चाहते हैं, यही एकमात्र भाषा सबसे ज़रूरी है।


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