नैनीताल- स्वयं सहायता समूह बल्दियाखान ने शुरू किया पिरूल संग्रहण कार्य

नैनीताल। वनाग्नि की घटनाओं को रोकने के लिए प्रचुर मात्रा में बायोमास के रूप में उपलब्ध पिरूल ( चीड़ की पत्ती) एकत्रीकरण का कार्य स्वयं सहायता समूह बल्दियाखान द्वारा प्रारम्भ कर दिया गया है। यह जानकारी देते हुए मुख्य विकास अधिकारी डॉ संदीप तिवारी ने बताया कि बल्दियाखान से पिरूल एकत्रीकरण का कार्य शुरू किया गया है। सभी खंड विकास अधिकारी को निर्देशित किया है कि समस्त स्वयं सहायता समूह के सहयोग से पिरूल संग्रहण का कार्य कराया जाय। इससे पर्यावरण स्वच्छ, लोगों की आर्थिकी सशक्त व पिरूल के साफ हो जाने से वनाग्नि की घटनाओं पर नियंत्रण व रोकथाम लगेगी।
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जनपद की स्वयं सहायता समूह द्वारा संग्रहित किये गए पिरूल को औद्योगिक विकास के लिये वन विभाग के माध्यम से फैक्टरी की मांग को पूरा किया जाएगा। इसके एवज में महिलाओं को रुपये 2 प्रति किलोग्राम की दर से मानदेय दिया जाएगा। सरकार द्वारा पिरूल से कोयला व बिजली बनाने के संयत्र स्थापित करने पर भी जोर दिया गया है।
गौरतलब है कि उत्तराखण्ड में 500 से 2200 मीटर की ऊॅचाई पर बहुतायत से पाये जाने वाले चीड़ के पेड़ों की पत्तियों को पिरूल नाम से जाना जाता है. उत्तराखण्ड वन सम्पदा के क्षेत्र में समृद्ध तो है ही, साथ ही चीड़ के वन भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं. 3.43 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में फैले चीड के वनों से ग्रीष्मकालीन सीजन में पतझड़ के समय लगभग 20.58 लाख टन पिरूल इनसे गिरता है. 20 से 25 सेमी लम्बे नुकीले पत्ते तीन पत्तियों के गुच्छ में सूखे पत्ते अत्यन्त ज्वलनशील होते हैं. पर्वतीय क्षेत्रों में वनाग्नि के मुख्य कारणों में पिरूल भी एक कारण है, जिससे प्रतिवर्ष कई जंगल वनाग्नि के भेंट चढ़ते।
पिरूल पत्ता ईंधन के लिए है बेहतर
योजना सफल रही तो ग्रामीणों महिलाओं को रोजगार मिलने के साथ ही ईधन का एक बेहतर विकल्प भी साबित हो सकती है. सबसे बड़ा फायदा तो यह होगा कि सड़कों के आस-पास के क्षेत्रों से यदि पिरूल संग्रह होगा तो वनाग्नि से बहुत हद तक नियंत्रण पाया जा सकेगा. वनाग्नि से जो वनस्पतियां, पेड़ तथा दुर्लभ वन्य जीवों को जो नुकसान होता है उससे सुरक्षा होगी तथा पिरूल की मोटी तह जम जाने से उसके नीचे वनस्पतियां नहीं उग पाती वे भी उगेंगी. ब्रिकेट के निर्माण में स्थानीय बेरोजगारों को रोजगार के अवसर भी मुहैय्या होंगे.यानि कुल मिलाकर पिरूल का उपयोग होने पर फायदे ही फायदे. निश्चित रूप से वनाग्नि को रोकने की दिशा में यह कदम काफी उपयोगी होगा।
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