हल्द्वानी – होली कब है और कब होगा होलिका दहन , पढ़िए सही तारीख और शुभ मुहूर्त
- शास्त्री महेश चंद्र जोशी ने किया असमंजस दूर
हल्द्वानी। शास्त्री महेश चंद्र जोशी ने होली की शुभकामनाएं देते हुए बताया कि फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी से होलाष्टक प्रारम्भ हो जाता है होलाष्टक प्रारम्भ होने से होली तक विवाह ,उपनयन, विवाह, उपनयन, गृहप्रवेश, गृहारम्भ आदि सभी शुभ कार्य वर्जित माने गये हैं ।
शास्त्री महेश चंद्र जोशी ने बताया कि इस बार होली को लेकर अनेकों प्रकार की भ्रांति हैं इस बार चीरबन्धन-रंगधारण 14 मार्च 2022 को सम्पूर्ण एकादशी तिथि भद्रा से व्याप्त होने के कारण रंगधारण चीरबन्धन व ध्वजारोपण 13 मार्च 2022 को प्रातः 10:22 बजे(दशमी तिथि की समाप्ति)के बाद होगा । यद्यपि 13 मार्च को 10:22 बजे से सूर्यास्त तक का सम्पूर्ण समय रंगधारण व चीरबन्धन के लिए शुभ ही है लेकिन इसमें भी मध्यान्ह 12:03 से 12:51 बजे तक का समय अभिजित् मुहूर्त अति उत्तम है ।
आमलकी-आँवला एकादशी व्रत-आमलकी एकादशी व्रत व आँवला पूजन 14 मार्च 2022को है , इसी दिन मीन संक्रांति(फूलदेई) का पर्व भी है ।
- होलिका दहन 17 मार्च को
इस वर्ष 17 मार्च 2022 को सायंकाल (प्रदोषकाल) से अर्द्धरात्रि तक का समय भद्रा दोष से युक्त होने के कारण ,धर्म शास्त्रीय नियमानुसार 17 मार्च को भद्रा पुच्छ काल में रात्रि 09:04 बजे से 10:14बजे के मध्य होलिका दहन किया जाना शुभ है ।
शास्त्री महेश चंद्र जोशी ने कहा कि उत्तराखंड के कुछ स्थानों में होलिका दहन के दिन पूर्णिमा (सत्य नारायण) व्रत नहीं करते जबकि अन्य प्रदेशों में सत्य नारायण व्रत यथावत् किया जाता है जिन प्रदेशों में होलिकादहन के दिन व्रत किया जाता है वहाँ के श्रद्धालु दिनांक 17 मार्च 2022 को सत्यनारायण व्रत करेंगे।
- होली-छरड़ी (धुलैण्डी) 19 मार्च को
बसन्तोत्सव:-इस वर्ष आम जनता में होली को लेकर असमंजस की स्थिति रहेगी । काशी की परम्परा के अनुसार काशी में किसी भी स्थिति में होलिका दहन के दूसरे दिन होली (धुलैण्डी) मनाई जाती है लेकिन अन्य स्थानों में यह पर्व उदय व्यापिनी चैत्र कृष्ण प्रतिपदा में मनाये जाने का शास्त्रीय विधान है जिसका कि काशी व देश के अन्य पंचांगो में स्पष्ट उल्लेख है अर्थात् पंचांगकारो में इस विषय में कोई मतभेद नहीं है । ऐसी स्थिति में काशी को छोड़कर अन्य सभी प्रदेशों में होली-छरड़ी (धुलैण्डी-रंग खेलने) का पर्व 19 मार्च 2022को मनाया जाना ही शास्त्र सम्मत है ।
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