धर्म प्रवाह: लोक कल्याण के लिए समर्पित , जानिए कौन हैं सत्य साधक विजेंद्र पांडे गुरुजी

- लोक कल्याण के लिए समर्पित , जानिए कौन हैं सत्य साधक विजेंद्र पांडे गुरुजी
हल्द्वानी। भारत भूमि आदिकाल से ही त्यागी, तपस्वी सन्तों ,योगियों ऋषि-मुनियों एवं सिद्ध साधकों की पावन भूमि रही है। लोक कल्याण ही उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य रहा है। जीव-जगत के कल्याण हेतु समय-समय पर ऐसे त्यागी पुरुष इस संसार में जन्म लेते रहे हैं और लोक मंगल के महान कार्य सम्पन्न करके संसार के लिए पूजनीय, वन्दनीय, अनुकरणीय बन गये। जन-जन की निःस्वार्थ एवं निष्काम सेवा से उनका जीवन महान बन गया। उनके आदर्शों पर चलकर न जाने कितने लोग अपना जीवन सार्थक कर चुके हैं। देवभूमि भारत में आज भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है जिनका जीवन लोक मंगल को समर्पित है। ऐसे ही एक निष्काम, निःस्वार्थ एवं त्यागी पुरुष है‘ सत्य साधक श्री विजेंद्र पांडे गुरुजी, जो एक महान साधक के साथ ही प्रकृति के उपासक भी हैं। और वर्तमान में राजधानी दिल्ली, उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड के नगरों, कस्बों तथा ग्रामीण अंचलों में भ्रमण कर अनेकानेक दुखियों के दुःख दूर करने के पावन अभियान में जुटे हुए हैं।

महामाया पीताम्बरी देवी की महान कृपा से विजेन्द्र गुरु जी ने अनेक दुर्लभ सिद्धियां प्राप्त की हैं जिनका उपयोग वे सदैव लोक कल्याण में करते हैं। निःस्वार्थ भाव से दीन-दुखियो तथा परेशान लोगों के दुःख हरना ही उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य है। वेशक! इसीलिए आज वे जहां कहीं भी निकल जाते हैं, परेशान व दुखी लोगों से घिरे रहते हैं। समस्या चाहे कितनी ही जटिल क्यों न हो, उसे सहजता से दूर कर देना उनकी एक अद्भुत विशेषता है। लोग उनकी इस दिव्य शक्ति को देख दंग रह जाते हैं, लेकिन उनके लिए यह बहुत सामान्य सी बात है। मॉ पीताम्बरी की पूजा-अर्चना व ध्यान -साधना के बाद दुखियों के दुःख दूर करते हुए जब कभी वे तनिक फुर्सत में होते हैं, उनके अनुयायी तथा उनसे स्नेह रखने वाले लोग अक्सर व्यक्तिगत, सामाजिक व राष्ट्रीय समस्याओं पर चर्चा के दौरान अनेक विचित्र सवाल उनसे कर देते हैं। विजेन्द्र गुरु जी के उत्तर सुनकर वे सहसा विश्वास नहीं कर पाते हैं, परन्तु समय के साथ जब उत्तर सही साबित होते हैं तो लोग उनकी चमत्कारिक शक्तियों के आगे नतमस्तक होने को विवश हो जाते हैं। यही कारण है कि वर्तमान में भिन्न-भिन्न जाति, समुदाय, धर्म व क्षेत्रों के लोग उनसे अप्रतिम स्नेह तथा अगाध श्रद्धा रखते हैं और सम्मान से उन्हें गुरु जी कहते हैं।

मूलरूप से उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के निवासी विजेन्द्र गुरु का असली नाम विजेन्द्र कुमार पाण्डेय है। इनके पिता इन्द्रराज पाण्डेय एक प्रतिष्ठित आयुर्वेदाचार्य थे और माता जी श्रीमती मालवती देवी एक धर्मपरायण महिला ।
विजेन्द्र गुरु का जन्म अपने ननिहाल में ही हुआ था। दरअसल उनके कोई मामा नहीं थे, इसलिए उनके नाना जी की इच्छा के अनुरूप विजेन्द्र के माता-पिता जनपद बहराइच अन्तर्गत अपने पैतृक गांव ‘सिमरियावां’ छोड़कर इनके नाना के गांव शिवदहा बरगदही में ही रहने लगे। जनपद बहराइच के पयांपुर विकासखण्ड अन्तर्गत यह सुन्दर गांव आपसी सौहार्द, भाईचारे एवं शान्तिपूर्ण वातावरण के लिए जाना जाता था। यहीं विजेन्द्र का जन्म हुआ। सम्भ्रान्त एवं शिक्षित ब्राह्मण परिवार होने के कारण विजेन्द्र को बचपन से ही धार्मिक एवं आध्यात्मिक वातावरण व संस्कार विरासत में मिले। फिर उनके नाना जी भी साधु हो चले थे और गांव में ही रहकर भगवान राम की साधना करते थे। उनके सानिध्य का भी विजेन्द्र पर अनुकूल प्रभाव पड़ा।

विजेन्द्र की प्रारम्भिक शिक्षा अपने ननिहाल में ही हुई। नाना राम उचित त्रिपाठी रामनामी महराज के नाम से जाने जाते थे, उनकी सलाह पर मात्र सोलह वर्ष की आयु में विजेन्द्र का विवाह हो गया। नाना के सानिध्य में विजेन्द्र की रुचि पूजा-पाठ, आध्यात्म आदि में बढ़ती चली गयी। नाना के शरीर छोड़ने पर उनके बक्से से मिली एक हस्त लिखित पुस्तक पढ़ने के बाद विजेन्द्र का धार्मिक विश्वास और दृढ़ हो गया। विवाह के पश्चात विजेन्द्र घर-गृहस्थी में रम गये, उनके तीन पुत्र हुए। इस दौरान वह बीच-बीच में एकान्त स्थलों में साधना आदि के लिए भी समय निकालते रहे। इस कार्य में परिवार के लोगों व सगे सम्बन्धियों का उन्हें अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पाता था लेकिन उनकी पत्नी का उन्हें पूर्ण सहयोग मिला।

पहली संतान के बाद जब विजेन्द्र का मन किसी एकान्त स्थल के लिए छटपटा रहा था, तब गांव के ही एक सज्जन ने उन्हें दूर जंगल के बीच ‘सोन पथरी’ नामक एक पवित्र स्थल पर जाने की सलाह दी। सन पथरी अगस्त्य मुनि की तपोस्थली कही जाती है। फिर क्या था, वह सन पथरी के लिए साइकिल से निकल पड़े। बीस किमी0 के घने जंगल से होकर एक गांव में पहुंचे, जहां एक सज्जन वर्मा जी मिले, वे सम्मान से अपने घर ले गये और स्वादिष्ट भोजन कराया। प्रातःकाल चलने लगे तो एक बुजुर्ग ने कहा जंगल में हिंसक जानवरों का खतरा है, घर लौट जाओ, लेकिन विजेन्द्र को तो लगन लगी थी वह अपने लक्ष्य पर निकल पड़े। सोन पथरी पहुंचने पर आश्रम में एक बाबा जी मिले जिन्हें शुक्ला जी कहते थे। उन्हें आभाष हो गया था कि आश्रम में कोई बालक आ रहा है। बाबा ने पूछा-यहां रुकोगे या साधना करोगे। विजेन्द्र ने कहा अच्छा लगेगा तो रुक जाऊंगा। बाबा के आदेश पर पुजारी ने आश्रम परिसर के दर्शन कराये, बहुत सुन्दर वातावरण के बीच एक स्थान पर एक धूनी देखी, जो विजेन्द्र के मन को भा गयी, बस वहीं पर 21 दिन तक 21घंटा नित्य नियम से महामाया पीताम्बरी देवी की साधना सम्पन्न की। भोजन के रूप में तीन वक्त थोड़ा जल और पांच-पांच पत्तियां बेल की लेते थे। साधना के दौरान उन्हें अनेक दिव्य अनुभूतियां हुई।

महामाया पीताम्बरी का मूल शक्तिपीठ दतिया मध्य प्रदेश में है, लेकिन विजेन्द्र ने मॉ पीताम्बरी के स्वरूप को हृदय में बिठाकर सन पथरी में ही मॉ की साधना सम्पन्न की और फिर बाबा का आशीर्वाद लेकर गांव लौट आये। एक सप्ताह घर में रुकने के बाद मिर्जापुर जिले में स्थित मॉ विंध्यवासिनी देवी के दरबार चले गये। कहा जाता है कि मॉ विंध्यवासिनी के दर्शन किये बिना कोई भी साधना पूर्ण नहीं मानी जाती है। लगातार 16 दिनों तक मॉ विंध्यवासिनी की साधना की। घर लौटने पर महामाया पीताम्बरी के दो अनुष्ठान किये। गृहस्थी के साथ-साथ धार्मिक कार्यक्रम लोक हित के कार्य तथा सन पथरी स्थित आश्रम आना-जाना चलता रहा। अब इसी में उनका ज्यादातर समय बीतने लगा।

वर्ष 2007 में उत्तम नगर दिल्ली में हुई एक चमत्कारिक घटना के बाद तो विजेन्द्र ने अपना जीवन महामाया पीताम्बरी देवी की सेवा-साधना के लिए ही समर्पित कर दिया। विजेन्द्र के पिता एक प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य थे और उत्तम नगर दिल्ली में रहकर जनसेवा करते हैं। वहां एक असाध्य रोगी के स्वास्थ्य लाभ के लिए विजेन्द्र ने हनुमान जी का एक अनुष्ठान किया तो वह रोगी पूर्ण स्वस्थ हो गया। इससे उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गयी और अब सगे-सम्बन्धियों का भी उन्हें सम्मान व सहयोग मिलने लगा। इस चमत्कारिक घटना से विजेन्द्र का मॉ के प्रति अखण्ड विश्वास हो गया और यहीं से उन्होंने अपना जीवन पूरी तरह मॉ के चरणों में समर्पित कर दिया। यहीं से लोकहित का सिलसिला एक पावन अभियान में बदल गया। उनके दिव्य एवं चमत्कारिक कार्यों को देखते हुए लाभान्वित होने वाले उनके भक्तों ने सम्मान से उन्हें गुरु जी कहना आरम्भ कर दिया और आज वे सर्वत्र इसी नाम से जाने जाते हैं।
वर्तमान में राजधानी दिल्ली समेत उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड में हजारों लोग आये दिन विजेन्द्र गुरु से लाभान्वित हो रहे हैं। दुखियों के दुःख दूर करना और लोकमंगल की कामना के पावन उद्देश्य को लेकर प्राकृतिक संरक्षण के लिए साधना व हवन यज्ञ आदि करना उनके जीवन का मूल उद्देश्य बन गया है।

विदित हो कि जय मां पीतांबरा साधना एवं दिव्य योग ट्रस्ट के संस्थापक सत्य साधक श्री विजेंद्र पांडे गुरुजी उत्तराखंड ,उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, नेपाल ,भूटान, राजस्थान समेत देश विदेश के तमाम शक्तिपीठों में लोक मंगल की कामना को लेकर निराहार 36 दिवसीय कठोर साधनाएं कर चुके हैं। देवभूमि उत्तराखंड की बात करें तो गुरु जी यहां रानीबाग के शीतला देवी मंदिर, लालकुआं के फलाहारी बाबा मंदिर, द्वाराहाट स्थित दूनागिरी मंदिर, श्रीनगर के भीलेश्वर महादेव मंदिर, रुद्रप्रयाग जनपद स्थित कालीशिला पर्वत, बागेश्वर के मां भद्रकाली मंदिर,डीडीहाट स्थित बाबा मलयनाथ मंदिर,पुटगांव स्थित ग्वेलज्यू दरबार में मां बगलामुखी जी की साधनाएं कर चुके है। इसके अलावा मध्य प्रदेश स्थित अमरकंटक मंदिर , मध्य प्रदेश के दतिया धाम पीतांबरा पीठ , उत्तर प्रदेश के बहराइच जनपद स्थित सोनपथरी आश्रम , अयोध्या धाम भगवान बुद्ध की तपोस्थली बागेश्वरी मंदिर में गुरु जी द्वारा लोक कल्याण के लिए 36 दिवसीय साधना की गई। सोनपथरी आश्रम, राप्ती नदी तट के अलावा देश के अनेक क्षेत्रों में सत्य साधक गुरु जी के निर्देशन में वर्षभर हवन यज्ञ का कार्यक्रम चलता रहता है। गुरुजी का मानना है कि मां बगलामुखी जी के हवन यज्ञ से देवी आपदाओं की रोकथाम होने के साथ ही वातावरण से नकारात्मक शक्तियों का दमन होता है। जिसके कई उदाहरण के सामने हैं यहां पर एक उदाहरण की बात करें तो उत्तराखंड की चारधाम यात्रा के दौरान केदारनाथ में आई आपदा के बाद सत्य साधक गुरु जी ने 36 दिवसीय महा साधना की मां की कृपा से तब से अब तक चारधाम यात्रा सकुशल चल रही है। बहरहाल यहां पर यह कहना उचित होगा कि जहां अनेक साधु-संतों वर्तमान में चमक दमक के साथ अपने निजी लाभ के लिए कार्य कर रहे हैं वही सच्चे साधक जैसे भी कुछ संत हैं जो निस्वार्थ भाव से लोग मंगल के लिए कार्य कर रहे हैं।






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