अल्मोड़ा: जंगल में बच्चे को जन्म देने मामले पर डीएम गंभीर , दिए यह बड़े निर्देश
अल्मोड़ा – विभिन्न समाचार पत्रों के माध्यम से गर्भवती महिला के दूरस्थ क्षेत्र में रहने पर जंगल में बच्चे को जन्म देने की सूचना का गंभीरता से संज्ञान लेते हुए जिलाधिकारी वन्दना सिंह ने मुख्य चिकित्साधिकारी को निर्देश दिए है कि जिले में जो भी क्षेत्र सड़क मार्ग से दूर हों, जहॉ पर आने-जाने की सुविधा उपलब्ध न हो व सड़कें बन्द हो या जगह-जगह क्षतिग्रस्त हों, उन क्षेत्रों की गर्भवती महिला को सम्भावित प्रसव तिथि से कम से कम 04 दिन पूर्व आशा/एएनएम के माध्यम से नजदीकी चिकित्सा केन्द्र में भर्ती किया जाय, ताकि संस्थागत प्रसव कराते हुए मां एवं बच्चे (जच्चा-बच्चा) को सुरक्षित किया जा सके।
जिलाधिकारी ने मुख्य चिकित्साधिकारी को निर्देश दिये हैं, कि यदि किसी परिस्थितिवश गर्भवती महिला चिकित्सालय में प्रसव पूर्व भर्ती नहीं होना चाहती है तो आशा एवं एनएनएम उनसे लिखित में सहमति प्राप्त भी करना सुनिश्चित करें। तथा लगातार उनके संपर्क में रहें।
उन्होंने कहा कि भविष्य में कोई भी प्रसव जंगल अथवा रास्ते में होते है तथा प्रसव के दौरान गर्भवती माता अथवा बच्चे की मृत्यु, चिकित्सा में समय पर न पंहुचने से, देरी के कारण होती है तो सम्बन्धित क्षेत्र की एएनएम आशा एवं प्रभारी चिकित्सा अधिकारी उत्तरदायी रहेंगे।
जिलाधिकारी ने मुख्य चिकित्साधिकारी को निर्देश दिये कि अपने अधीन कार्यरत समस्त आशा/आशा फेसिलिटेटर एवं ए0एन0एम0 को निर्देशित करें कि वह प्रसव पूर्व महिला का नियमित फालोअप लें ताकि समयपूर्व उसे चिकित्सालय में भर्ती कर सुरक्षित प्रसव करवाया जा सके एवं मातृ-मृत्यु एवं शिशु मृत्यु दर को कम किया जा सके।
पढ़िए— क्या था पूरा मामला
अल्मोड़ा। विगत मंगलवार शाम के समय गांव की गर्भवती महिला प्रियंका वाणी को प्रसव पीड़ा शुरू हुई तो गांव में डोली का इंतजाम करने में काफी समय लग गया। इसके बाद उसकी सास हेमा वाणी, ताई सास लक्ष्मी वाणी व आशा कार्यकर्ता संजू देवी चिकित्सालय के लिए रवाना हुए। गांव के कुछ लोग डोली उठा रहे थे। अंधेरा और मौसम खराब होने के कारण चढ़ाई और ढाल वाले रास्ते में डोली ले जाना कठिन हो रहा था। इसी दौरान प्रियंका की तबीयत बिगड़ने लगी। आखिर में तय किया गया कि उसका प्रसव रास्ते में ही करवा दिया जाए। आखिर में लोगों ने छातों के सहारे महिला के लिए ओट की। साथ लाए गए कंबलों के माध्यम से महिला के लिए बिछावन का इंतजाम किया गया और आशा व अन्य महिलाओं की मदद से प्रियंका ने स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। मां और बच्चा दोनों स्वस्थ हैं।
गौरतलब है कि पतलचौरा गांव से भैसियाछाना का सरकारी चिकित्सालय लगभग कई किमी दूर है। इसमें लगभग ढाई किमी का फासला चढ़ाई वाला है और शेष ढाई किमी का रास्ता ढाल वाला है। इस मार्ग को पैदल ही तय करके कनारीछीना तक पहुंचा जा सकता है। जहां से सड़क मार्ग से चिकित्सालय पहुंचा जा सकता है।



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