विशेष आलेख: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020:-स्वर्णिम भविष्य की झलक
:-राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 : स्वर्णिम भविष्य की झलक
:गौरीशंकर काण्डपाल प्रवक्ता , राजकीय इंटर कॉलेज गुनियालेख धारी, नैनीताल (उत्तराखंड)
देश के शिक्षाविदों, विशेषज्ञों, शिक्षकों ,जनप्रतिनिधियों एवम् सामाजिक कार्यकर्ताओं के सामूहिक विचार मंथन का परिणाम राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के रूप में हमारे सामने है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति भावी पीढ़ी के लिए न केवल रोजगार का एक सशक्त माध्यम बनकर सामने आएगी बल्कि संस्कारवान कुशल नागरिक भी तैयार करने में मददगार साबित होगी।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के भाग 3 अध्याय 22 के अंतर्गत बिंदु संख्या 22.18 में उल्लिखित तत्वों के अनुसार, ‘ भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित प्रत्येक भाषा के लिए अकादमी स्थापित की जाएगी………..इसी प्रकार व्यापक पैमाने पर बोली जाने वाली अन्य भारतीय भाषाओं की अकादमी केंद्र अथवा /और राज्य सरकारों द्वारा स्थापित की जाएंगी।’ निसंदेह इससे आगामी पीढ़ी को बहुत सारे लाभ प्राप्त होंगे जिसके अंतर्गत उत्तराखंड के कुमाऊंनी , गढ़वाली और जौनसारी भाषाओं के लिए राज्य सरकार अथवा केंद्र सरकार के द्वारा अकादमी केंद्र बनाया जाएगा ,जिससे स्थानीय भाषाएं समृद्ध होंगी । रोजगार के नए क्षेत्रों का सृजन होगा । संपूर्ण राज्य के बच्चे युवा पीढ़ी एक साथ विभिन्न आंचलिक भाषाओं का प्रशिक्षण प्राप्त कर पाएंगे। पीढ़ी दर पीढ़ी विलुप्त हो रहे आंचलिक शब्दों एवं उनसे जुड़े सांस्कृतिक तत्वों को भी संरक्षित किया जा सकेगा। सरकार द्वारा इस हेतु अकादमिक केंद्र कुमाऊंनी भाषा हेतु अल्मोड़ा क्षेत्र तथा गढ़वाली और जौनसारी भाषा हेतु क्रमशः गैरसैंण और देहरादून में बनाया जा सकता है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के भाग 3 अध्याय 22 के अंतर्गत बिंदु संख्या 22.8 के अनुसार, ‘उत्कृष्ट स्थानीय कलाकारों हस्तकलाकारों……को विशिष्ट प्रशिक्षक के रूप में स्कूल से जोड़ना। पाठ्यचर्या में कला, हस्तकला……पारंपरिक भारतीय ज्ञान का समावेशन करना।’ इस हेतु स्थानीय रूप से विभिन्न पारंपरिक , आंचलिक , सांस्कृतिक कलाओं एवं हस्तकलाओं में दक्ष कलाकारों को आमंत्रित किया जा सकता है । कुछ पारंपरिक कलाएं जिनका यहां उल्लेख किया जाना समीचीन होगा , को शामिल किया जा सकता है । अल्मोड़ा का ताम्र उद्योग, सोमेश्वर घाटी का हुड़का बॉल, कुमाऊंनी गढ़वाली और जौनसार भाबर क्षेत्र की आंचलिक संस्कृति से जुड़े कलाकारों को विद्यालय में आमंत्रित किया जा सकता है, जिससे भावी पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ा जा सकेगा।
कुछ अन्य उदाहरण जैसे,चमोली क्षेत्र के ऋतुप्रवास करने वाली भोटिया जनजाति एवं क्षेत्र में प्रचलित पौंणा नृत्य विधा से जुड़े कलाकारों, इसके अतिरिक्त अन्य उत्तराखंड के समस्त क्षेत्रों के आंचलिक, सांस्कृतिक मूल्य और विरासत से जुड़े कलाकारों को विद्यालय में आमंत्रित किया जा सकता है। विलुप्त कला से जुड़े कलाकारों को स्थानीय रूप से चिन्हित कर उन्हें विद्यालय में विशेष रूप से विशिष्ट कलाकारों के रूप में आमंत्रित किया जा सकता है तथा उनकी कला को बच्चों को सिखाने का प्रयास किया जा सकता है । कुछ अन्य क्षेत्र जहां की कलाएं अपना विशेष स्थान रखती है जैसे काष्ठ कला विशेषकर रिंगाल से जुड़े कलाकार ओखलकाण्डा, नैनीताल एवं चंपावत क्षेत्र में कार्यरत हैं, ऐसी परंपरागत कलाओं को पुनर्जीवित करने में एन ई पी 2020 अपनी महती भूमिका निभाएगी ।
ऐपण कला यूं तो संपूर्ण उत्तराखंड में अपनाई जाती है किंतु , इसके विशिष्ट तत्व एवम मौलिक गुण अल्मोड़ा क्षेत्र में पाए जाते हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 उत्तराखंड की ऐसी नायाब कलाओं के पुनरुत्थान में नया मार्ग प्रशस्त करेगी। साथ ही इस विधा से जुड़े कलाकारों को भी आर्थिक सहयोग प्रदान करेगी।
काष्ठ कला के अंतर्गत सॉफ्टवुड तथा हार्डवुड से जुड़े कलाकार उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं जिनमें से खटीमा(उधम सिंह नगर) थारू जनजाति के बहुत से कलाकार , रानीखेत तथा द्वाराहाट (अल्मोड़ा) क्षेत्र के कलाकार ,हल्द्वानी (नैनीताल) के कलाकार कार्य कर रहे हैं । लौह धातु के कलाकारों हेतु लोहाघाट (चंपावत) तथा ताम्र शिल्प में दक्ष कलाकारों के लिए अल्मोड़ा शहर के ताम्र नगरी क्षेत्र के कलाकारों के माध्यम से विद्यालय के प्रत्येक बच्चे को किसी न किसी कौशल से जोड़ा जा सकेगा । वह श्रम की महत्ता और भारतीय कलाओं और कारीगरी सहित अन्य विभिन्न व्यवसायों के महत्व से भी परिचित होंगे ।
वर्तमान भौतिकतावादी युग में विभिन्न परंपरागत कलाएं लगभग विलुप्त होती जा रही हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ऐसी कलाओं के पुनरुत्थान में मील का पत्थर साबित होगी । इससे आंचलिक कला और स्थानीय कलाकारों को प्रोत्साहन मिलेगा। उत्तराखंड की विलुप्त होती परंपरागत कलाओं को संरक्षण प्राप्त हो सकेगा।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के भाग 2 अध्याय 16.1 के अनुसार, ‘भारत में व्यावसायिक शिक्षा के प्रसार में तेजी लाने की आवश्यकता है।’ आधुनिक युग विज्ञान और प्रौद्योगिकी का युग है। इस हेतु बच्चों को मोबाइल फोन, रिपेयरिंग लैपटॉप रिपेयरिंग जैसे कौशल की व्यवसायिक शिक्षा प्रदान की जा सकती है ,जो कि उनके लिए रोजगार के नए द्वार भी खोलेगा ।
द्वितीयतः व्यवसायिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए छात्र छात्राओं को प्रारंभिक स्तर से ही स्थानीय हस्तशिल्प , हस्त कौशल, पारंपरिक ज्ञान को सिखाने का प्रयास किया जाना चाहिए। विद्यालय के संस्थागत छात्र छात्राओं को ‘विशिष्ट आमंत्रित विशेषज्ञों के द्वारा ओपन डिस्टेंस लर्निंग अर्थात ओडीएल के माध्यम से ऑनलाइन ट्रेनिंग’ भी प्रदान की जा सकती है। कुटीर उद्योग व्यवसायिक प्रशिक्षण के अंतर्गत बच्चों को कृषि एवं उद्यान विभाग के विशेषज्ञों के द्वारा जैम, जैली, अचार, मुरब्बा आदि के बनाने का प्रशिक्षण प्रदान किया जा सकता है। सॉफ्ट टॉयस मेकिंग के अंतर्गत टैडी बियर बनाने का प्रशिक्षण विद्यार्थियों को दिया जा सकता है।
इस हेतु राज्य स्तर पर विद्यालयों में स्थापित वर्चुअल लैब के माध्यम से भी विद्यार्थियों को व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान किया जाना एक बेहतर विकल्प हो सकता है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के भाग 2 अध्याय 16 के बिंदु 16.3 के अनुसार, ‘भविष्य में छात्रों के समक्ष व्यावसायिक शिक्षा की पेशकश किस प्रकार की जाती है !’ यह इस बात पर निर्भर करता है कि, छात्र किस भौगोलिक परिवेश अथवा आंचल में रह रहे हैं एवं उनकी क्षेत्रीय आवश्यकताएं किस प्रकार की हैं तथा वे अपने स्थान विशेष से प्राप्त होने वाले कच्चे उत्पादों के माध्यम से भी किस प्रकार आसानी से व्यवसायिक शिक्षा की ओर उन्मुख हो सकते हैं अथवा उनमें अपना करियर बना सकते हैं । उदाहरण के तौर पर रिंगाल ,बांस ,मुंज घास,बेंत आदि की उपलब्धता ।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के भाग 2 अध्याय 16 के बिंदु 16.6 के अनुसार , ‘एमएचआरडी….एक राष्ट्रीय समिति नेशनल कमिटी फॉर द इंटीग्रेशन ऑफ वोकेशनल एजुकेशन (एनसीआइवीई ) का गठन करेगा ।’ इस हेतु आवश्यक है कि एनसीआइवीई के अंतर्गत प्रत्येक राज्य स्तर पर भी स्टेट कमिटी फॉर द इंटीग्रेशन ऑफ वोकेशनल एजुकेशन अर्थात एससीआइवीई का गठन किया जाए । इसके साथ ही साथ प्रत्येक जनपद स्तर पर जिला कमेटी और ब्लॉक स्तर पर ब्लॉक कमेटी गठित की जाएं ।
विद्यालय स्तर पर जमीनी गतिविधियों के संचालन संपादन और मॉनिटरिंग के लिए स्कूल कमेटी फॉर द इंटीग्रेशन ऑफ वोकेशनल एजुकेशन का गठन किया जा सकता है । प्रत्येक कमेटी अपने से उच्चतर कमेटी को रिपोर्ट प्रेषित करेंगी और मासिक गतिविधियों से अवगत कराएंगी ।
यदि समग्र रूप में देखा जाए तो राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 आने वाली पीढ़ी के सर्वांगीण विकास में न केवल सहायक सिद्ध होगी बल्कि, यह आत्मनिर्भर और सशक्त भारत का निर्माण करने में भी सहायक सिद्ध होगी ।


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