आबादी में स्टोन क्रशर का जबरदस्त विरोध ,विधायक दुम्का ने भी दिया समर्थन
हल्दूचौड़:- क्षेत्र के जयराम गांव में आबादी के बीचो-बीच लगाए जा रहे स्टोन क्रशर /स्क्रीनिंग प्लांट को लेकर स्थानीय ग्रामीणों में जबरदस्त आक्रोश बना हुआ है। उक्त क्रशर की अनुमति निरस्त करने की मांग को लेकर ग्रामीणों का धरना दूसरे दिन भी जारी रहा। ग्रामीणों के इस आंदोलन को सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों तथा स्थानीय जनप्रतिनिधियों का पूर्ण समर्थन मिल रहा है। आज धरने के दूसरे दिन शुक्रवार को सबसे अहम बात यह रही कि क्षेत्रीय विधायक नवीन दुम्का व ब्लॉक प्रमुख रूपा देवी धरना स्थल पर पहुंचे और ग्रामीणों के इस आंदोलन को पूर्ण समर्थन दिया।

इस दौरान विधायक नवीन दुम्का ने ग्रामीणों के आंदोलन को 100% जायज ठहराते हुए कहा कि आबादी के बीच में स्टोन क्रशर/स्क्रीनिंग प्लांट लगाया जाना सरासर गलत है। उन्होंने कहा इस तरह प्लांट लगने से कृषि भूमि बर्बाद होने के साथ ही क्षेत्र के किसान उजड़ जाएंगे।
उन्होंने कहा वह जनता के सेवक हैं, जनता के इस आंदोलन में उनका पूरा समर्थन है , वह संघर्ष में जनता के साथ खड़े है तथा हर वह प्रयास करेंगे कि आबादी के बीच से स्टोन क्रशर की अनुमति निरस्त हो।
इस दौरान विधायक नवीन दुम्का ने एक प्रेस विज्ञप्ति भी जारी की जिसमें उन्होंने आबादी के बीच में स्टोन क्रशर की अनुमति पर आश्चर्य जताते हुए विस्तार से अपने विचार व्यक्त किए हैं। तथा साथ ही उन्होंने जनता के संघर्ष को मुकाम तक पहुंचाने में पूर्ण पूर्ण सहयोग का भरोसा दिलाया है।

हल्दूचौड़:-ग्राम – जयराम में लग रहे स्क्रीनिंग प्लान्ट को लगाने की जानकारी होते ही गांव वासियो सम्मानित प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा मुझे 4 जून को ज्ञापन दिया गया जिस पर मैने स्थानीय प्रशासन को उक्त प्रकरण की जांच को कहा। इस स्क्रीनिंग प्लान्ट को NOC 2019 में तब मिल गयी थी जब आबादी से प्लान्ट की दूरी 100 मी0 मानक थीं। जून 2020 में यह प्लान्ट लग तब रहा है जैब रिफलिंग प्लान्ट से आवादी की दूरी का मानक 300 मी0 कर दिया है। आखिर शासन को 100 मी0 की दूरी 300 मी0 करने की आवश्यकता क्यों हुई? मै गाव व किसान आवादी के हित में सन् 1995 से लागातार जागरुक व सघर्ष कर रहा हूँ।
पूरे काल खण्ड को देखे तो- प्लांट/स्टोन क्रेशर मानकों को इनको तय करने वालों ने जनता से हास्यास्पद व विश्वसनीय बना दिया है।
- उ०प्र० में आवादी का मानक 1 कि0मी0 दूर था।
- 17/10/2002 को उत्तराखण्ड की नयी खनन नीति आयी वह आश्चर्य चकित करने वाली व हास्यास्पद थी उसमें स्टोन क्रेशर कालेज/ स्कूल/चिकित्सालय/धार्मिक स्थल/पुल/नहर/NH/नदी तट, आरक्षित वन, दो स्टोन क्रेशरों के बीच की दूरी तो 500 मी० होनी चाहिये। लेकिन इसमे आवास/घर का कोई जिक्र ही नहीं था अर्थात आवादी मान शून्य कर दिया गया। घर के आगे भी लग सकता था।
4.
- दिनांक 05/11/2007 को पुनः नीति बदली तथा अन्य मानकों के साथ-साथ आवादी शब्द को जोडा गया तथा 5 घर परिभाषा की गयी तथा नहर के साथ गूल को भी मानक में रक्खा गया। 3 जुलाई 2008 को इसको फिर बदला गया तथा आवादी आदि से दूरी के मानक पुनः लगभग समाप्त /नाम मात्र का कर दिया गया इस मध्य मा० उच्च न्यायालय ने भी कई वार जनहित में हस्तक्षेप किया तथा आदेश व निर्देश दिये।
- तब से पुनः कई बार स्टोन क्रेशर/ पल्पलाजर / नेचुरल प्लान्ट के मानक को थर्मा मिटर के पारे के तरह उपर नीचे किया जाता रहा है। इन उद्योगों का असर सीधे, आदमी के फेफडे पर पड़ता है जिसको बचाने के लिये पूरी दुनिया कोविड-19 से इस समय लड़ रही है तथा हाफ गयी है। फिर कोई अधिकारी कैसे तय कर सकता है कि कौन फेफडा 2019 में इतना मजबूत है 100 मी0 दर धूल झेल सकता है लेकिन 2020 में उसे 300 मी०, दूर से सास लेना चाहिये? इससे भूमि मानक तय करने वालों पर भी दी
पुन मेरा उद्योग लगाने वालों से भी विनम्र आग्रह है कि उद्योग लगाते समय लोगों की शुभकामनाये मिले, बधाई दे न कि गांव के उजडने की आशंका बने, वद्दुवा या आँसू निकले या श्राप मिले आवादी से बाहर बहुत सारी जगह इस लायक है। जनभावनाओं का सम्मान भी शासन/ सरकार का ही काम है मेरा मानना है कि स्टोन क्रेशर/ स्क्रीनिंग प्लान्ट से वह गांव/किसान तो उजड ही जाते है। मेरा समर्थन गांव के लोगों के साथ है तथा इस विषय में सभी स्तर पर वार्ता करुगा।
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