उत्तराखंड: पहाड़ में सातों-आठों पर्व की धूम ,देखिए देवभूमि संस्कृति की अद्भुत झलक (Video)
Almora News- उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में सातों-आठों महोत्सव की धूम मची हुई है।
अल्मोड़ा जिले के सिरोला गांव में सातों-आठों (गमरा पर्व) पूर्ण आस्था व हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। लोकगायक नैन नाथ , ग्राम प्रधान विक्की गोस्वामी ,सुंदर गोस्वामी, गणेश ,बच्ची नाथ गोस्वामी, तिल्लू गोस्वामी , गोविंद नाथ समेत तमाम कलाकार झोड़ा चाचरी की समा बांध रहे हैं।
पंचमी तिथि से शुरु हुए सातों आंठू महोत्सव में भजन कीर्तन के अलावा झोड़ा-चांचरी का आयोजन किया गया। इस महोत्सव को गमरा देवी भी कहा जाता है। कुलदेवी के रूप में पूजित मां गमरा की पूजा अर्चना में गांव के सभी लोग भारी संख्या में शामिल होते है। जिसमें दूर दराज से भी लोग भारी संख्या में गौरा-महेश के दर्शन को आते हैं। भादो मास की पंचमी तिथि को पांच प्रकार के अनाज जिन्हे बिरुड़ा कहा जाता है जिसे महिलाएं अपने घरों मे तांबे के बर्तन में भिगोती है। उसके उपरांत सप्तमी को उक्त विरुड़े सामूहिक रूप से विधिविधान से धोये जाते है। तथा उस दिन महिलाएं व्रत रखकर अपने हाथ में अभिमंत्रित दूबधागा बांधती है । अगले दिन अष्टमी को विरुड़े गौरी-महेश को चढाए जाते है । इस दिन भी महिलाएं दिन भर व्रत कर गले में अभिमंत्रित दूब धागा बांधती है। मां गौरी व भगवान महेश की पूजा, अर्चना व्रत पति की दीघार्यू व घर में सुख शांति के लिए किया जाता है।
.पढ़िए सातों-आठों की लोककथा
विरूड़ाष्टमी के दिन महिलायें गले में दुबड़ा (लाल धागा) धारण करती हैं पौराणिक कथाओं के अनुसार पुरातन काल में एक ब्राहमण था जिसका नाम बिणभाट था। उसके सात पुत्र व साथ बहुएं भी थी लेकिन इनमें से सारी बहुएं निसंतान थी। इस कारण वह बहुत दुखी था। एक बार वह भाद्रपद सप्तमी को अपने यजमानों के यहां से आ रहा था। रास्ते में एक नदी पड़ती थी। नदी पार करते हुए उसकी नजर नदी में बहते हुए दाल के छिलकों में पड़ी| उसने ऊपर से आने वाले पानी की ओर देखा तब उसकी नजर एक महिला पर पड़ी जो नदी के किनारे कुछ धो रही थी| वह उस स्त्री के पास गया वहां जा के देखा वह स्त्री कोई और नहीं बल्कि स्वयं पार्वती थी, और कुछ दालों के दानों को धो रही थी। बिणभाट ने बड़ी सहजता से इसका कारण पूछा तब उन्होंने बताया कि वह अगले दिन आ रही विरूड़ाष्टमी पूजा के विरूड़ों को धो रही है। तब बिणभाट ने इस पूजा की विधि तथा इसे मिलने वाले फल (आशीर्वाद) के बारे में जानने की इच्छा की तब माँ पार्वती ने इस व्रत का महत्व बताया| भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को महिलायें व्रत रख कर बिरूड़ों को गेहूँ, चना, मास, मटर, गहत पञ्च अनाज को उमा-महेश्वर का ध्यान करके घर के एक कोने में अखंड दीपक जलाकर तांबे के बर्तन में भिगा दिया जाता है। दो दिन तक भीगने के बाद तीसरे दिन सप्तमी को इन्हें धोकर साफ कर लिया जाता है। अष्टमी को व्रतोपवास करके इन्हें गौरा-महेश्वर को चढ़ाया जाता हैं| भाट ने घर आकर बड़ी बधु को यथाविधि बिरूड़ भिगाने को कहा। बहु ने ससुर के कहे अनुसार अगले दिन व्रत रखकर दीपक जलाया और पंच्च अनाजो को एकत्र कर उन्हें एक पात्र में डाला। जब वह उन्हें भिगो रही थी तो उसने एक चने का दाना मुंह में डाल लिया जिससे उसका व्रत भंग हो गया। इसी प्रकार छहों बहुओं का व्रत भी किसी न किसी कारण भंग हो गया।
सातवीं वहु सीधी थी। उसे गाय-भैंसों को चराने के काम में लगाया था। उसे जंगल से बुलाकर बिरूड़े भिगोने को कहा गया। उसने दीपक जला बिरूड़े भिगोये। तीसरे दिन उसने विधि विधान के साथ सप्तमी को उन्हें अच्छी तरह से धोया| अष्टमी के दिन व्रत रखकर शाम को उनसे गौरा-महेश्वर की पूजा की। दूब की गांठों को डोरी में बांध दुबड़ा पहना और बिरूड़ों का प्रसाद ग्रहण किया। मां पार्वती के आशीर्वाद से दसवें माह उसकी कोख से पुत्र ने जन्म लिया। बिणभाट प्रसन्न हो गया। तभी से महिलाऐं संतति की कामना तथा उसके कल्याण के लिए आस्था के साथ इस व्रत को किया करती हैं।
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