गुप्त नवरात्रि: पावन राप्ती नदी तट पर मां बगलामुखी साधना में लीन हुए सत्य साधक
लोकमंगल की कामना को लेकर सत्य साधक गुरुजी ने 26 जून से शुरू की साधना
श्रावस्ती पावन राप्ती नदी के तट पर जारी है मां बगलामुखी की साधना
4 जुलाई को होगा मां बगलामुखी का विशेष हवन और प्रसाद वितरण कार्यक्रम
लखनऊ। जय मां पीतांबरी साधना एवं दिव्य योग ट्रस्ट के संस्थापक सत्य साधक श्री विजेंद्र पांडे गुरुजी गुप्त नवरात्रि के पावन अवसर पर श्रावस्ती जनपद अंतर्गत पवन राप्ती नदी के तट पर मां बगलामुखी की साधना में लीन हैं। आषाढ़ गुप्त नवरात्रि के प्रथम दिवस 26 जून से शुरू हुई सत्य सत्य साधक गुरु जी की साधना आगामी 4 जुलाई तक चलेगी। 4 जुलाई को मां बगलामुखी का विशेष हवन और प्रसाद वितरण का कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।
इस दौरान गुरु जी ने गुप्त नवरात्र के विषय में बताते हुए कहा कि पुराणों कहा गया है कि गुप्त नवरात्रि दस महाविद्या को समर्पित हैं। सार्वजनिक दो नवरात्रि तो सभी करते हैं लेकिन जो गुप्त नवरात्रि करता है, उस पर देवी भगवती की विशेष कृपा होती है।
सनातन धर्म में गुप्त नवरात्रि का बहुत महत्व है, गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा की 10 महाविद्याओं की गुप्त पूजा की जाती है, जिसमे माँ बगलामुखी अष्टम महाविद्या है, जिन्हें ब्रम्हास्त्र भी कहा जाता है, गुप्त नवरात्रि में इनकी साधना व पुजा से जातक को सिद्धिया प्राप्ति होती हैं।
गुरु जी ने मां बगलामुखी की महिमा का बखान करते हुए कहा कि दस महाविद्याओं में शामिल मां बगलामुखी, समुद्र के मध्य में स्थित मणिमय द्वीप में अमूल्य रत्नों से सुसज्जित सिंहासन पर विराजमान हैं। देवी त्रिनेत्रा हैं, मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करती है। पीले शारीरिक वर्ण युक्त है। देवी ने पीला वस्त्र तथा पीले फूलों की माला धारण की हुई है। देवी, एक युवती के जैसी शारीरिक गठन वाली हैं, देखने में मनोहर तथा मंद मुस्कान वाली हैं। देवी ने अपने बाएं हाथ से शत्रु या दैत्य के जिह्वा को पकड़ कर खींच रखा है तथा दाएं हाथ से गदा उठाए हुए हैं, जिससे शत्रु अत्यंत भयभीत हो रहा हैं।
सत्य साधक गुरु जी के अनुसार देवी के इस जिव्हा पकड़ने का तात्पर्य यह है कि देवी वाक् शक्ति देने और लेने के लिए पूजी जाती हैं। वे चाहें तो शत्रु की जिव्हा ले सकती हैं और भक्तों की वाणी को दिव्यता का आशीष दे सकती हैं। देवी वचन या बोल-चाल से गलतियों तथा अशुद्धियों को निकाल कर सही करती हैं। कई स्थानों में देवी ने मृत शरीर या शव को अपना आसन बना रखा हैं तथा शव पर ही आरूढ़ हैं तथा दैत्य या शत्रु की जिह्वा को पकड़ रखा हैं।
गुरु जी ने बताया सर्वप्रथम देवी की आराधना ब्रह्मा जी ने की थी, तदनंतर उन्होंने बगला साधना का उपदेश सनकादिक मुनियों को किया, कुमारों से प्रेरित हो देवर्षि नारद ने भी देवी की साधना की। देवी के दूसरे उपासक स्वयं जगत पालन कर्ता भगवान विष्णु हुए तथा तीसरे भगवान परशुराम।
शांति कर्म में, धन-धान्य के लिए, पौष्टिक कर्म में, वाद-विवाद में विजय प्राप्त करने हेतु तथा शत्रु नाश के लिए देवी उपासना व देवी की शक्तियों का प्रयोग किया जाता हैं। देवी का साधक भोग और मोक्ष दोनों ही प्राप्त कर लेते हैं।

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