उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस:- 20 साल बाद क्या हासिल
नैनीताल। उत्तराखंड ग्वाल सेवा संस्थापक अधिवक्ता पंकज कुलौरा ने राज्य स्थापना दिवस के मौके पर समस्त राज्य वासियों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि उत्तराखंड राज्य केवल प्रमाण पत्र मिले राज्य आंदोलनकारियों के आंदोलन से नहीं मिला बल्कि आंदोलन के दौरान हर उस छात्र और कर्मचारी, मजदूर, व्यवसाई महिलाएं, पुरुष, बच्चे प्रत्येक उत्तराखंड वासी के सहयोग से राज्य बना परंतु उत्तराखंड राज्य बन जाने के 20 साल बाद भी पहाड़ की परिस्थितियां पहाड़ के लोगों के लिए वैसी ही हैं जैसे उससे पहले की थी केवल बदला तो नेताओं का दौर, नेताओं के तौर तरीके, नेताओं की बोली, नेताओं की कोठियां और नेताओं की गाड़ियां, साथ ही उत्तराखंड के लिए नए-नए और बड़े बड़े ऑफिसर जो यदि उत्तराखंड नहीं बनता तो शायद वही रहता जहां उसकी नियुक्ति हुई थी चाहे वह न्यायालयों में बैठे हुए जज हो या फिर जिला मुख्यालय पर बैठे हुए अधिकारी, पर दुर्भाग्य यह है उत्तराखंड राज्य बनने के बाद जो पहाड़ वासियों के सपने थे वह सपने ही रह गए और अपनी जीवन यापन के लिए रोजी-रोटी की तलाश में पलायन कर गए चाहे गांव से शहरों में हो या फिर अपने प्रदेश से दूसरे प्रदेश!*
बहुत शर्म की बात यह है कि आज हमारे पहाड़ का युवा जब पॉलिटेक्निक बीटेक या आईटीआई करके उत्तराखंड के सिडकुल उधम सिंह नगर या हरिद्वार जाता है तो वह केवल बंधुआ मजदूर से ज्यादा कुछ नहीं होता और उसको नौकरी पर स्थाई रूप से नहीं रखा जाता या फिर बहुत कम वेतन पर स्थाई तौर पर नियुक्त किया जाता है, और हमारे राज्य के नेता, मंत्री, मुख्यमंत्री बड़ी-बड़ी वाहवाही लूटते हैं और दबंगता से अपनी बात करते हैं कि आज हमने उत्तराखंड में 70% से ज्यादा स्थानीय लोगों को रोजगार दिया है, और सच्चाई क्या है यह हमारे प्रदेश के युवा बेरोजगारों या स्थानीय उद्योगों में काम कर रहे लोगों को भली-भांति पता है, सरकारें बनती हैं और बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं परंतु जैसे ही 5 साल पूरे होने को आते हैं तो सरकार पूरे उत्तराखंड की गड्ढे पड़ी सड़कों की मरम्मत करने लग जाती है और जो मरमत की जाती है वह आज आप प्रत्यक्ष रूप से देख सकते हैं जहां डामर हो रहा है वह दूसरे दिन ही उखड़ने लगता है परंतु यदि शिकायत कहे तो किस से कहें और होगा भी क्या ? और नेताओं के शिलान्यास का दौर भी शुरू हो जाता है।
हमारे बिजली प्रदेश में बिजली के दाम कहां पहुंच गए यह सब हमारे प्रदेश वासियों को बताने की जरूरत नहीं है और वही हाल पानी का है जिस प्रदेश में पानी का उद्गम होता है वही पानी इतना महंगा कर दिया गया है कि आम आदमी का दम घुटने लगा है और महंगा पानी होने के बावजूद शहरों में या गांव में कहीं भी पानी भरपूर नहीं दिया जाता हर जगह रोस्टर सिस्टम लगा दिया गया है प्रदेश के किसानों की फसल पूरी तरह से देवी अदा से बर्बाद हो चुकी है जो बचे हैं उन्हें जंगली जानवर नुकसान पहुंचाते हैं और जो फसल बच जाए तो किसानों को उनकी फसल के वास्तविक मूल्य भी नहीं मिल पाता,
प्रदेश का हर कर्मचारी अधिकारी अपने आप को आम जनता का मालिक समझता है और जनता से मिलने का समय तक अधिकारियों के पास नहीं है यदि कोई अधिकारी जनता से मिलता भी है तो इस तरह से मिलता है जैसे वह जनता उसकी गुलाम हो जबकि असल में चाहे डीएम हो या एसडीएम हो या कोई बाबू या फिर चपरासी यह सब केवल नौकर हैं जनता के नौकर।
पंकज कुलौरा
संस्थापक-उत्तराखंड ग्वाल सेवा



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